निःसंतान : खीरा खाने से संतान की प्राप्ति 👉 साल में 1 दिन खुलने वाला मंदिर में जरूर जाए

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में माता लिंगेश्वरी देवी के मंदिर में दर्शन करने और खीरा चढ़ाने से निसंतान दंपत्तियों संतान की प्राप्ति होती है. यह गुफा ग्रामीणों के अटूट आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।

खीरा खाने से संतान की प्राप्ति माना जाने वाला मंदिर



छत्तीसगढ़ का बस्तर (Bastar) अपनी अनोखी परंपरा के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। रियासत काल से जुड़ी परंपरा आज भी कायम है। छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले (Kondagaon District) में ऐसा ही एक मंदिर है जो अपने अनोखी परंपरा और नि:संतान दंपतियों को संतान प्राप्ति की मन्नत पूरी होने के लिए जाना जाता है। जिले के फरसगांव के बड़े डोंगर के क्षेत्र गाँव आलोर में एक गुफा मौजूद है और इस गुफा में माता लिंगेश्वरी देवी (Mata Lingeshwari Devi) का मंदिर है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर साल में एक बार खुलता है और माता के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है।


साल में एक बार खुलता है मंदिर

दरअसल, साल में केवल एक बार खुलने की वजह से इसे छत्तीसगढ़ का तीर्थ स्थल भी कहा जाता है। खास बात यह है कि यहां मनोकामना मांगने का तरीका निराला है. संतान प्राप्ति की इच्छा करने वाले दंपति को यहां खीरा चढ़ाना आवश्यक होता है। चढ़ा हुआ खीरा को पुजारी द्वारा नाखून से फाड़कर खाना पड़ता है। जिसे शिवलिंग के समक्ष ही कड़वा भाग सहित खाकर गुफा से बाहर निकलते हैं। यह गुफा प्राकृतिक शिवालय ग्रामीणों के अटूट आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। कहा जाता है कि आने वाले अच्छे बुरे समय का भी यहां पूर्वाभ्यास हो जाता है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर में घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ों में मौजूद प्राचीन देवालयों का अहम स्थान है।

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ये तमाम देवालय बस्तर की प्राचीन धार्मिक परंपराओं के खूबसूरत दर्शन कराते हैं, इन्हीं प्राचीन धार्मिक धरोहरों में एक सुप्रसिद्ध नाम कोंडागांव जिले के आलोर ग्राम स्थित पहाड़ के शीर्ष पर गुफा के भीतर मौजूद प्राकृतिक शिवलिंग भी है। जिसका दर्शन साल में केवल एक बार किया जा सकता है, साल में एक बार भक्तों को दर्शन देकर ये माता उनकी मुरादें पूरी करतीं हैं।

फरसगांव ब्लॉक के बड़े डोंगर क्षेत्र की गुफा में मौजूद लिंगेशवरी माता को शिव और शक्ति का समन्वित रूप माना जाता है। साल भर इस गुफा का प्रवेश द्वार बंद रहता है और हर साल भाद्र महीने के शुक्ल पक्ष में नवमी तिथी के बाद आने वाले बुधवार को एक दिन के लिए क्षेत्रीय बैगा दैविक विधी-विधान के साथ इस गुफा का द्वार खोलते हैं।

गुफा के भीतर हु-ब-हू शिवलिंग की तरह दिखने वाला एक पत्थर उभरा हुआ है, क्षेत्रवासियों के मुताबिक ये पत्थर शिव-पार्वती के अर्धनारिश्वर स्वरूप का परिचायक है. इसीलिए इसे केवल शिवलिंग नहीं, बल्कि लिंगेश्वरी माई के नाम से भी पूजा जाता है। एक ग्रमीण के मुताबिक निसंतान दंपत्ति यहां पहुंचकर संतान की कामना करते हैं और माता उनकी इच्छा पूरी करती है।

यहां मन्नत मांगने का तरीका भी अनोखा है, प्रचलन के मुताबिक संतान इच्छुक दंपत्ति यहां माता के चरणों मे खीरा यानि ककड़ी चढ़ाते हैं और चढ़े हुए खीरे को पुजारियों के द्वारा वापस लौटाने के बाद पति-पत्नी खीरे को अपने नाखून से फाड़कर देव स्थल के समीप ही खाते हैं। जिससे जल्द उन्हें संतान का सुख नसीब हो जाता है।

जानकारों की मानें तो साल दर साल इस दैवीय शक्ति से युक्त शिवलिंग की उंचाई खुद-ब-खुद बढ़ती जा रही है। यही नहीं एक अनोखी बाद ये भी है कि जब इस गुफा का पट खोला जाता है तो हर साल शिवलिंग के सामने रखे रेत में किसी न किसी जीव जंतु का पद चिन्ह रेत में बना मिलता है और ये पद चिन्ह क्षेत्र के आगामी हालात का पुर्वानुमान कराते हैं।

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अगर रेत में बिल्ली के पांव के निसान मिले तो क्षेत्र में भय का महौल रहेगा, इसी तरह बाघ के पैरों के निशान मिले तो क्षेत्र में जंगली जानवरों का आतंक का पूर्वानुमान लागाया जाता है। मुर्गी के के पैरों के निशान अकाल के सुचक हैं तो घोड़े के पैरों के निशान युद्द और कलह का प्रतीक हैं।

आपको बता दें कि हर साल दूसरा दूसरा निसान मिलते आ रहा है पिछले साल 2023 में गुफा में बाघ के पैरों के निशान मिले था, जो जंगली जानवरों के आतंक का सूचक है।

दशकों पहले से चली आ रही इस परंपरा का क्षेत्रवासी हर साल बड़ा आयोजन करते हैं और हर साल करीब लाखों लोग एक साथ लंबी लाइनें लगाकर माता के सामने मुराद लेकर पहुंचते हैं। जिनकी संतान प्राप्ति की मुराद मां पूरी करती हैं वे भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने माता के दर पर पहुंचते हैं, देव स्थल समिति भी अपने पास रखे रिकार्डों के आधार पर ये दावा कर रही है कि मन्नत मांगने वाली कई मां की गोद को माता ने संतान सुख से भरी है।

क्षेत्रवासियों की अब यही मंशा है कि सरकार और प्रशासन इस प्राकृतिक देव स्थल की गंभीरता से सुध ले ताकि आने वाले दिनों में एक बड़ा धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं के सामने आ सके. क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि भी प्रशासन के साथ मिलकर इस स्थल को तराशने की जुगत में लगे हुए हैं।


निसंतान दंपतियों की होती है मनोकामना पूरी

जानकार बताते हैं कि पहले चट्टान की ऊंचाई बहुत कम थी। लेकिन बस्तर की यह लिंग गुफा गुप्ता है। लिंगई माता हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है। और दिन भर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना और दर्शन के बाद पत्थर टीका कर दरवाजा बंद कर दिया जाता है। खासकर निसंतान दंपति यहां संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां हजारों दंपतियों को संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी हुई है। और मनोकामना पूरी होने के बाद दूसरे साल अपने संतान को लेकर  फिर माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। खास बात यह है कि यहां प्रसाद में खीरा चढ़ाया जाता है। इस तरह की अनोखी परंपरा केवल छत्तीसगढ़ के आलोर गुफा मंदिर में ही देखने को मिलती है।।

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लोगो द्वारा पूछे गए प्रश्न ( FAQ )


प्रश्न 01 - क्या सच मे खीरा खाने से संतान की प्राप्ति होता है ?

जी हाँ, छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला से लगा हुआ ग्राम आलोर गाँव मे साल में एक बार खुलने वाला माता लिंगेश्वरी मंदिर में खीरा खाने से संतान की प्राप्ति होती है।


प्रश्न 02 - माता लिंगेश्वरी मंदिर साल में एक बार कब खुलता है ?

लिंगई माता हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है। और दिन भर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना और दर्शन के बाद पत्थर टीका कर दरवाजा बंद कर दिया जाता है।


प्रश्न 03 - खीरा खाने से संतान की प्राप्ति होने वाला मंदिर किस राज्य में है ?

खीरा खाने से संतान की प्राप्ति होने वाला मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य जिला कोंडागांव ग्राम आलोर में स्थित है।